पाली के गौरव साहित्यकार अर्जुनसिंह शेखावत पंचतत्व में विलीन, यूनेस्को से सम्मानित रही उनकी रचनाएं

पाली। साहित्य, संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र में अमिट छाप छोड़ने वाले पद्मश्री अर्जुनसिंह शेखावत का शनिवार को नम आंखों से अंतिम संस्कार किया गया। शुक्रवार को 91 वर्ष की उम्र में लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया था।
पाली पंचायत समिति के सामने हिन्दू सेवा मंडल मोक्षधाम में अंतिम संस्कार हुआ। पार्थिव देह को उनके बेटों और पोतों ने मुखाग्नि दी। अंतिम यात्रा उनके निवास स्थान पुराना हाउसिंग बोर्ड से निकली, जिसमें बारिश के बावजूद बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक और साहित्य प्रेमी शामिल हुए। एसडीएम विमलेंद्र सिंह राणावत, सीओ सिटी उषा यादव, भाजपा जिलाध्यक्ष सुनील भंडारी, कांग्रेस नेता महावीर सिंह सुकरलाई समेत कई जनप्रतिनिधि व सामाजिक
कार्यकर्ता मौजूद रहे।
पाली के भादरलाऊ गांव में 4 फरवरी 1934 को जन्मे शेखावत ने राजस्थानी और हिंदी दोनों भाषाओं में साहित्य साधना की। 1952 में उनकी पहली रचना ‘प्रजासेवक’ में प्रकाशित हुई थी। उनकी चर्चित रचनाओं में ‘अणबोल्या बोल’, ‘राजस्थानी व्रत कथा’, ‘संस्कृति रा वडेरा’, ‘वन रा वारिस’ और ‘भाखर रा भौमिया’ प्रमुख हैं।
‘भाखर रा भौमिया’ को यूनेस्को द्वारा सम्मानित किया गया था और इसी पुस्तक के आधार पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने चार डाक्यूमेंट्री फिल्में भी बनवाई थीं। राजस्थानी भाषा के प्रबल पक्षधर रहे शेखावत को साहित्यरत्न, आयुर्वेदरत्न और वैद्याचार्य जैसी उपाधियां भी मिलीं। उनका योगदान आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।